मुख़्तलिफ़ कितने है रंग हमारे मिले है फिर भी तीन ही रंगों में! जुदा करने के कैसे भी हो इरादें बहरहाल, हम तो साथ ही रहेंगे! भाईचारा, प्यार को रहें फैलातें पैग़ाम-ए-मोहब्बत पहुँचाते रहेंगे! - मनोज 'मानस रूमानी'
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सृष्टी नि मानव! सूर्य म्हणेल माझा धर्म... विश्वाला प्रकाशमय करणे! चंद्र म्हणेल माझा धर्म... रमणीय शीतलता देणे! हवा म्हणेल माझा धर्म... जगणाऱ्यांस प्राणवायू देणे! जल म्हणेल माझा धर्म... प्राणिमात्रांची तहान भागवणे! झाड म्हणेल माझा धर्म.. फुल, फळ, सावली देणे! मानव इथे काय म्हणेल...? उमगले की सांगेन म्हणतो! - मनोज 'मानस रूमानी'