फूलों से समेटा देखा चेहरा हसीन..
गालों पे थी निखरी गुलाबी रंगत..
उस पर खिलखिलाती तबस्सुम ..
सोचा कहूं तुम ही ज़ीनत-ए-गुलशन!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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