यूँ तो हम पहले से ही रूमानी मिज़ाज के 
और उसमें हसीनाओं के दीदार होते रहें!
तो तारीफ़-ए-हुस्न लिखें बग़ैर कैसे रहेतें 
बस ख्वाहीश की हुस्न से शायरी होती रहें!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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