कहीं दीवारें..कहीं सरहदें 
सीमाओं में बंद मोहब्बतें 
फिर भी ज़ोर-ए-ज़ज्बातेँ..
रहें पैग़ाम-ए-प्यार फैलाएँ!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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