इंतज़ार-ए-ग़ुल!

गुलशन-ए-जहाँ हो रहें है आबाद 
खिल, महेक रहां है गुल हर जगह 
चमनवाले हो रहें है अब मुश्ताक़ 
कब हो जाए उनको दीदार-ए-गुल!

- मनोज 'मानस रूमानी'


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